क्या मानवता दिशा-निर्देशों की मोहताज होती है? - IAS Naveen Jain


जब से धरती पर मानव का जन्म हुआ है, तब से ही वह समाज के लिए देश के लिए या अपने आसपास के लोगों के लिए कुछ-न-कुछ करने का प्रयास करता रहता है I मैं यह तो दावा नहीं करता हूँ कि शत-प्रतिशत मनुष्य किस प्रकार के प्रयास करते होंगे परंतु ऐसे लोगों की संख्या बहुतायत होगी, यह मैं सोच रखता हूँ I सब लोगों ने भी बचपन से अपने परिवार को किसी-न-किसी रूप में लोगों की मदद करते हुए देखा होगा और जब अपने परिवार से बाहर जाकर समाज को देखा तो आपको समाज में भी इस प्रकार के बहुत सारे व्यक्ति और संस्थाएं नजर आए होंगे, जो आमतौर पर गरीब लोगों के लिए जरूरतमंदों के लिए अथवा वंचित वर्गों के लिए अपनी कपेसिटी में जो कुछ भी कर सकते हैं, करते  रहते हैं I समाज में इस तरह के बहुत सारे धनाढ्य लोग भी होते हैं, जो अपार संपदा के मालिक होते हैं और समय के साथ उन्हें यह भान होने लगता है कि अब जब उन्होंने खुद के लिए और अपने परिवार के लिए और यहां तक कि अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी काफी कुछ कर लिया है तो उनका दायित्व बनता है कि अब वे समाज की तरफ भी देखें I काफी लोग ऐसे भी होते हैं जो अकूत संपत्ति के मालिक बनने के बाद भी कल्याणकारी नहीं बन पाते हैं और प्राय: ऐसे लोगों के बारे में लोग तरह तरह की बातें करते भी रहते हैं कि शायद ये लोग अपने मृत्यु के साथ ही अपना सारा पैसा भी अपने साथ ले जाएंगे I  कहने का अर्थ यह है कि जैसे-जैसे सभ्यता आगे बढ़ी है वैसे वैसे धनी लोगों ने मानवीय कार्य करने का इतिहास रचा हैवहीं हम इसी क्षण यह भी कह सकते हैं कि शायद इस प्रकार की सोच रखने वाले लोग पर्याप्त संख्या में नहीं रहे होंगे और बहुत सारे लोग सभी प्रकार की सामर्थ्य होने के बावजूद इसमें अपना बहुमूल्य योगदान नहीं दे पाए I  जब मनुष्य को सत्ता का लालच हुआ और उसे भी पावर का चस्का लगा तो दुनिया में विभिन्न प्रकार के युद्धों और सत्ता संघर्ष शुरू हुए तो अपनी अपार शक्ति के बल पर सत्ता हासिल करने वाले और सत्ता के कारण अनेक प्रकार के  सत्ता-उत्पन्न लाभ प्राप्त होने पर महारथी और महाबली होने भी मानव और मानवता की तरफ रुख किया होगा I 

हमारी अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियां यह बताती है कि अपनी सत्ता के चरम पर पहुंचने के बाद बहुत सारे सम्राटों और राजाओं ने धर्म का अथवा त्याग का अथवा सन्यास का रास्ता अपनाया और अपने बाहुबल और सैन्य बल के दम पर हासिल की हुई संपदा को किसी अच्छे कार्य के प्रचार प्रसार में लगायाI प्राचीन कथाओं में ऐसे ऋषि मुनि हुए हैं जिन्होंने एक पक्षी को बचाने के लिए अपने शरीर का बलिदान कर दिया था; ऐसे यशस्वी सम्राट हुए हैं जिन्होंने लगातार विजय हासिल करने के बावजूद दुनिया के सभी प्रकार के आराम को त्याग दिया था; आधुनिक भारत में हमारे अपने देश के और यहाँ तक की बाहर से आकर यहाँ की संस्कृति को अपनाने वाले लोगों जैसे मदर टेरेसा आदि ने अपने पूरे जीवन को पीड़ितों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया I जैसे जैसे हम बड़े होते गए हैं और हमें विभिन्न प्रकार की शिक्षा दी गई है या हमने इधर-उधर से बहुत सारी बातों को जाना है या बहुत सारे तथ्य हमारे दिमाग में  जगह बनाने लगे तो आधुनिक भारत में भी बहुत सारे ऐसे महापुरुषों के बारे में जानने का अवसर मिला जिन्होंने अपनी धनसंपदा या अपनी सीमित संपदा के बावजूद मानवता के लिए बहुत अच्छे कार्य किए और गरीबों की स्थिति को सुधारने अथवा उनके आने वाली पीढ़ियों के दीर्घकालीन लाभ के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया I 

सारे विचार विमर्श के बाद यह सवाल पैदा होता है कि आखिर ऐसी कौन सी दिव्य शक्ति है जो इंसान के अंदर दूसरे मानव के कल्याण की इच्छा शक्ति को पैदा करती होगी I  व्यक्ति के पास कितनी भी धनसंपदा आ जाए अथवा वह कितना भी शक्तिशाली बन जाए,  और अधिक पाने की इच्छा कभी समाप्त नहीं होती है और यह लालच और अधिक बढ़ता जाता है I कई लोग अपने पूर्वजों से प्रेरणा पाते हैं और कोशिश करते हैं कि वे भी अपने पूर्वजों की तरह अपने गांव के लिए अपने समाज के लिए और अपने आसपास के लोगों के लिए कुछ भलाई का काम करें I अवश्य ही कुछ लोग ऐसे होते होंगे, जो विद्वानों से यह सुनकर मान चुके हैं कि इस लोक में भलाई का काम करने पर परलोक में उन्हें काफी अच्छे फल प्राप्त होंगे जैसे कि स्वर्ग या मोक्ष I जब हम बात पराक्रमी और बलशाली योद्धाओं की करते हैं तो शायद उनके दिमाग में कोई अपराध बोध होता होगा जो उन्हें यह सब करने के लिए मजबूर करता होगा I यह अपराध बोध उनमें स्वयं भी आ सकता है अथवा किसी गुरु की शरण में आने के बाद उनके किसी उपदेश के कारण भी संभवतया उनके अंदर इस प्रकार का बदलाव हुआ हो I हम यह कह सकते हैं कि लोग अपने अगले जन्म को सुधारने के लिए भी शायद इस प्रकार के कदम उठाते होंगे I  हमें यहाँ इस बात को इग्नोर नहीं करना चाहिए कि शायद कुछ मनुष्य ऐसे भी होते होंगे जिनको अब तक वर्णित इन विभिन्न प्रकार के तर्कों से कोई फर्क नहीं पड़ता होगा और वे केवल  मानवता के भले के लिए नि:स्वार्थ ही अपने द्वारा अर्जित किए गए धन, ज्ञान अथवा शक्ति को बांटने के लिए तैयार हो जाते होंगे I

आप सबको ध्यान ही होगा कि 2020 में पूरी दुनिया के साथ-साथ हमारे भारत देश में भी कोरोना-वायरस का कहर बरपा था और इसके कारण समाज के बहुत सारे लोगों को तरह-तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ गया था I फिर भी, बहुत सारे लोग किसी प्रकार से अपने आसपास के गरीब या मजबूर लोगों की मदद करने का प्रयास कर ही रहे थे I  सरकारी संस्थाओं और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा अपने अपने स्तर पर लोगों की मदद करने के प्रयास किए गए और इनमें से बहुत सारे प्रयासों के सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले I  जब लोग इस तरह की इंसानियत दिखा रहे थे तो सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने इसका तथाकथित रूप से प्रचार-प्रसार भी करना शुरू कर दिया था, जिसकी लोगों ने काफी बुराई भी शुरू कर दी थी I  इस तरह की बुराई करने वाले लोग दो प्रकार के थे-  पहली प्रकार के वे लोग थे जो खुद बहुत अच्छी भलाई का काम कर रहे थे और प्रचार-प्रसार के द्वारा खुद को नहीं चमका रहे थे;  दूसरी प्रकार के लोग इस प्रकार के थे जो ना तो खुद कुछ कर पा रहे थे और ना ही करने की इच्छा थी परंतु दूसरों को रोकने  टोकने के मामले में विशेषज्ञ थे I  इस बात से यह भी पता चला कि हिंदुस्तान में बहुत से लोग आपकी मदद तभी करेंगे जब उन्हें कोई नोटिस करेगा I  नोटिस करवाने के लिए आजकल सोशल मीडिया सबसे अच्छा साधन बन गया है और ऐसे में बांटने का सामान ले जाने के साथ एक अच्छा कैमरा या कैमरे वाला फोन और उसका इस्तेमाल करके बढ़िया सी फोटो क्लिक करने वाला आदमी ले जाना बहुत जरूरी हो गया I कहीं ना कहीं कुछ लोगों ने अति भी कर दी थी और जब इस तरह के फोटो सामने आने लगे जिसमें बहुत थोड़ा सामान देने के लिए एक बहुत बड़ी भीड़ खड़ी है तो देख कर बात में दम भी लगता था I किसी व्यक्ति को एक केला देते हुए 10 लोगों द्वारा हाथ लगाए जाने की फोटो बहुत वायरल हुई थी I कई लोग 100 के 50 मास्क अस्पताल के स्टाफ को इस तरह से दे रहे थे मानो वे हिमालय से संजीवनी बूटी लेकर आए हैं, जिसे लाना असंभव था I  इस प्रकार भलाई के इस पूरे कारवां को कुछ लोगों की बेवकूफी ने ब्रेक सा लगाना शुरू कर दिया I  ऐसे समय में हम सबको यह लगने लगा था कि शायद अब तो मानवीय कार्य करने के लिए भी कोई गाइडलाइन जारी करने ही पड़ेगी नहीं तो लोग मानवता का यूं ही मजाक उड़ाते रहेंगे I

एक  छोटी सी परीक्षा और कर लेते हैं या आप अपने पहचान में किसी और व्यक्ति की यह परीक्षा ले सकते हैं कि जब कोरोना के लॉकडाउन की वजह से बहुत सारे कर्मचारी कारखानों दुकानों या अन्य कार्यालयों में आने की स्थिति में नहीं थे और बाद में स्थिति सामान्य होने पर जब उन्होंने वापस कार्य ग्रहण किया तो क्या उनके वेतन को लेकर हम सक्षम लोगों द्वारा भी मानवता के सभी उसूलों का पालन किया गया था कि नहीं I  जिस तरह की बातें उस समय सामने आ रही थी, उस पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद यह एहसास हुआ कि इंसानियत दिखाना और बिना किसी मतलब के इंसानियत दिखाना भी इतना आसान काम तो नहीं है I  

अपार धन संपदा होने के बावजूद किसी को देने की नीयत नहीं होने वाले लोग और अपने थोड़े से अर्जित किए गए सुख को भी दुखियों के साथ बांटने की इच्छा रखने वाले- ऐसे ही लोगों की तरफ इशारा करते हुए मैंने मेरे इस लेख के टाइटल को चुना है कि क्या लोग किसी कल्याणकारी अथवा मानवीय भलाई के कार्य को करने के लिए तथाकथित दिशा-निर्देशों के इंतजार में हैं ? शायद हम में से बहुत सारे लोग अपने आप को यह कहकर तसल्ली दे देते होंगे कि हम कोई बहुत बड़े अधिकारी, नेता, खानदानी रईस या बिजनेसमैन तो हैं नहीं कि हमारे पास इतनी इनकम या अन्य साधन हो कि हम दूसरे लोगों के साथ उसको बांट सके अथवा भलाई के बड़े-बड़े कार्य कर सकें I मेरा यह मानना है कि हमारे समाज में इस प्रकार के लोगों की संख्या ज्यादा है जो किसी-न-किसी रूप में किसी अन्य को मदद देने की स्थिति में तो है परंतु कतिपय अनजान कारणों से वे अपने आपको इस तरफ मोड़ नहीं पा रहे हैं और इस कारण हमारी इस पृथ्वी पर जितनी ज्यादा भलाई और अच्छाई पैदा हो सकती है, वह पैदा नहीं हो पा रही है I मैं केवल उसी दिन भूखे लोगों को खाना खिलाने के बारे में सोच पाऊंगा जिस दिन में हजारों लोगों का भंडारा आयोजित करने की स्थिति में आ जाऊंगा परंतु क्या मैं मुझे मिलने वाले सीमित भोजन में से कुछ हिस्सा ऐसे परिवारों और बच्चों के साथ बांटने के लिए तैयार हो सकता हूं जिसको देने से मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है परंतु उन जरूरतमंदों को इसका बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है I दिन भर में किसी व्यक्ति का भला करने के लिए हमें अपनी जेब से पैसा खर्च करना ही पड़े ऐसा जरूरी नहीं है या किसी को कोई वस्तु देकर ही उसका भला किया जा सकता है यह भी जरूरी नहीं है ; बल्कि कई बार तो केवल किसी व्यक्ति को कोई सूचना देकर अथवा सही समय पर उसे सही रास्ता दिखा कर भी मानवता का परिचय दिया जा सकता है I आपने किसी रेलवे स्टेशन पर या बस स्टैंड पर या किसी सड़क के किनारे पर खड़ी हुई किसी बूढ़ी औरत को अपने गांव पहुंचने के लिए उपलब्ध होने वाले साधन के संबंध में गिड़गिड़ा कर लोगों से मदद की भीख मांगते हुए देखा होगा परंतु आपने स्वयं चल कर ऐसे इतने लोगों की मदद करने की कोशिश की या नहीं, इतनी सी परीक्षा तो आप अपनी ले लीजिए I कहने का मतलब केवल इतना है कि हम तो कई बार भगवान  के भेजे हुए इन छोटे-छोटे अवसरों का भी लाभ नहीं उठा पाते हैं I 

इसी संदर्भ में मैं आप लोगों को राजस्थान के शेखावटी इलाके की एक कहानी सुनाना चाहता हूं जिसका इंसानियत से काफी अच्छा वास्ता है और यह कहानी मुझे व्यक्तिगत रूप से भी काफी पसंद है और मैंने काफी अवसरों पर इसे लोगों को सुनाया भी है I जैसा कि आप जानते हैं कि शेखावटी के  धनी लोग काफी  साजो-सामान वाले होते हैं और उनकी बड़ी-बड़ी हवेलियां होती हैं I  एक बार एक  राहगीर  लंबा सफर करता हुआ किसी गांव में पहुंचा और प्यास के मारे उसका  गला सूख रहा था I  गांव में पहुंचकर अपने सामने एक बड़ी हवेली देखकर उसके बहुत बड़े दरवाजे  की सांकल को उसने खटखटाया I  अंदर से किसी प्रकार का कोई रिस्पांस नहीं आने पर उसने दोबारा  सांकल को थोड़े संकोच के साथ पुनः खटका दिया I  दोबारा खटखटाने पर भी कोई जवाब नहीं मिलने पर उसने इधर-उधर देखा और फिर उस बड़े से दरवाजे को अंदर की तरफ धकेल दिया I  दरवाजा काफी भारी था लेकिन उसके धकेलने से थोड़ा अंदर को जाने पर वह अंदर आंगन में देखने की स्थिति में आ चुका थाI  तब उसने देखा कि आंगन के बीचो बीच एक बड़ी सी चारपाई पर हवेली के सेठ जी बैठे हुए हैं I  दरवाजा धकेलने की आवाज सुनकर सेठ जी का ध्यान जब उस तरफ गया और राहगीर से उनकी आंखें मिली तो राहगीर थोड़ा डर सा गया I  सेठ जी की आंखों में भी थोड़ी सी नाराजगी तो  थी परंतु उन्होंने उस राहगीर से आंखों आंखों में उसके दरवाजा धकेलने के कारण को जानना चाहा I  राहगीर ने सेठ जी की तरफ पूरी आशा के साथ अपनी बात कही -  सेठ जी मैं  राहगीर हूँ और बहुत प्यास लगी हुई है कृपया मुझे थोड़ा पानी दिलवा दीजिए I  सेठ जी ने उस व्यक्ति की तरफ देखा और फिर सोचा कि पानी पिलाने में कोई दिक्कत नहीं है इसीलिए उन्होंने तुरंत अपने नौकरों को आवाज देनी शुरू कर दी-  अरे राजू अरे रामू सुनो कोई व्यक्ति आया है इसको पानी पिला दो I  संभव है सेठ जी की आवाज घर के किसी भी नौकर के कानों तक नहीं पहुंची और इसलिए कोई पानी पिलाने के लिए वहां नहीं आया I  राहगीर ने  दुबारा दया भरी नजरों से सेठ जी को देखा और सेठ जी ने  फिर से अपने नौकरों को वहीं आवाज लगा दी I  लेकिन इस बार भी नौकरों की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई तो ऐसे में राहगीर की नजरें मिलते ही सेठ जी ने इस बार बोल ही दिया-  “अरे भाई!  मैं तुम्हें पानी तो पिला देता परंतु इस समय कोई इंसान नहीं है”I  सेठ जी की यह बात सुनते ही राहगीर मन ही मन मुस्कुराया और उसने एक ऐसी बात कह डाली जो अपने आप में इतिहास बन गई और इस कहानी के माध्यम से पता नहीं कितने लोगों को प्रेरणा देने लगी I  मेरी भी आप से यह विनती है कि आप इस लाइन को गौर फरमाए I  सेठ जी की पिछली बात कि किसी इंसान के नहीं होने से मैं तुम्हें पानी नहीं पिला सकता का जो जवाब उस राहगीर ने दिया वह यह था-  “सेठ जी!  थोड़ी देर के लिए आप इंसान बन जाइए”I  

मुझे लगता है कि इस छोटी सी पंक्ति में बहुत सारे संदेश हैं और यह हमें बार-बार एक ही बात कहती है कि इंसानियत इतनी भी बड़ी चीज नहीं है कि हम नहीं कर पाए, केवल हम सही मौका मिलने पर उसका लाभ नहीं उठा पाते हैं I इसके लिए भी लोगों के अंदर सही प्रकार के गुणों का होना बहुत जरूरी है I गुप्त दान हमारे देश में सदियों से काफी प्रसिद्ध रहा है और कई बार लोग यह भी आरोप लगा देते हैं कि जिन लोगों के पास बेनामी या काला धन होता है, उन लोगों के द्वारा गुप्त दान दिया जाता है I कमाकर दान देने वाले लोग जताने की कोशिश करते ही हैं I मनुष्य द्वारा अपने दिन-प्रतिदिन के कामों को करते समय उन्हें बहुत अधिक निष्ठा के साथ करके और अपनी टीम को आगे बढ़ाने की भावना के साथ नेतृत्व देकर और जिन लोगों के लिए वह काम कर रहा है, उनके कल्याण के लिए पूरे समर्पण के साथ काम करना भी बहुत बड़ी मानवता है और हम में से बहुत सारे लोग इसमें भी फेल हो जाते हैं I जब एक चिकित्सक किसी मरीज को देखने से इनकार कर देता है या उसे उपलब्ध इलाज नहीं देता है ; कोई अध्यापक किसी विद्यार्थी के भविष्य के हिसाब से अपना सर्वोत्तम ज्ञान देने में कतराने लगता है ; कोई अधिकारी किसी जरूरतमंद की मदद करने की बजाय उसे औपचारिकताओं में उलझा देता है- तो ऐसा महसूस होने लगता है कि कहीं-न-कहीं इन लोगों को भी शायद दिशा निर्देशों की आवश्यकता है I जब हम खुद सक्षम होते हैं या हमारे साधन हमें सामाजिक रूप से या आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस कराने लगते हैं तो ऐसे में खुदगर्जी छोड़ देनी चाहिए और थोड़ी व्यापक सोच रखनी चाहिए I जिस मदद को देने से आपको चींटी जितना भी महसूस नहीं होगा वह किसी व्यक्ति या परिवार के लिए हाथी जितनी मदद हो सकती है, यह हमेशा याद रखना चाहिए I किसी व्यक्ति अथवा किसी परिवार के अत्यंत दु:ख भरे दिनों में हमने उन लोगों की अपनी खुद की हैसियत के हिसाब से मदद की होगी तो यह बात याद आते ही हमें अपने इंसान होने पर गर्व होगा I दूसरी यह भी संभावना है की  अच्छी खासी गुंजाइश होने के बावजूद हमने किसी की मदद करने में कोई रुचि ही नहीं ली और जब कभी आपको यह बात याद आएगी  तो बहुत संभव है कि आपको खुद के इंसान होने पर शक हो सकता है I 

आइए, दिशा निर्देशों का इंतजार नहीं करते हैं और जितनी भलाई हम अपने हाथ निपटा सकते हैं, निपटा डालें I
- नवीन जैन, आई.ए.एस., राजस्थान
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