मैं पिताजी को ‘बावो/ बावा” (बापू या बाबा का स्थानीय भाषा में उच्चारण) कहता हूँ इस शब्द का अपना मिठास हैं, आनंद हैं, अपनापन हैं, ये मुझे एक भावानात्मक जुड़ाव देता हैं। मैं कभी ये नहीं कहता कि फ़ादर/ डैड बोलना गलत हैं ये तो बस अपनों को पुकारने का ज़रिया मात्र हैं। मुझे असली सुकून मेरी स्थानीय भाषा का नाम जिसमे जब से बोलना सीखा तब से बोल रहा हू तो अब दूसरों को देख के कुछ अलग बोलूँ ऐसा मन कभी माना ही नहीं इस शब्द के साथ बचपन की यादें जुड़ी हुई हैं; और ना जाने पता नहीं परंतु आज भी ये शब्द दिल में आते ही एक अलग तरह का आत्मविश्वास, ख़ुशी और चमक चेहरे पर आ जाती हैं। अपने लोगो के साथ अपनी स्थानीय भाषा में बात करना हमेशा मुझे एक अलग सुकून देता हैं।
पिताजी की सहजता का स्तर अपने आप में अलग ही लेवल का हैं मैंने मेरे पिता के चेहरे पर कभी भी तनाव या ग़ुस्सा नहीं देखा चाहे कुछ भी हो कोई भी परिस्थिति हो बस सहजता के साथ उसको स्वीकार कर लेना और ईश्वर को धन्यवाद दे देना शायद हम कभी इस स्तर तक नहीं पहुँच पाएँगे।
पिताजी औपचारिक शिक्षा भले ही नहीं ले पाये भले ही स्कूल के शिक्षक को भले ही अब्राहम लिंकन की तरह शिक्षक को पत्र ना लिख पाए हो पर उनकी शिक्षा को लेकर समझ गजब की हैं मैं बचपन से देखता आ रहा हूँ मेरे गाँव की स्कूल के दोस्त मेरे पिताजी के भी दोस्त हैं हम सबके साथ वो पढ़ायी की बातें करते थे; स्कूल के शिक्षकों से मिलना हमारी पढ़ाई का पूछना और हमें कहते रहना अपने को अच्छी पढ़ायी करनी हैं।
वैसे तो पिताजी के व्यक्तित्व का वर्णन करने की ना तो मेरे हाथों में क्षमता हैं और ना मेरे पास इतने शब्द हैं पर मेरे पिता की सबसे बड़ी बात,जो मैं मेरी अल्प बुद्धि से जान पाया वह हैं - सहजता और ठहराव। पिताजी के व्यक्तित्व में ग़ज़ब का ठहराव हैं ; दुनियादारी की किसी भी चीज से प्रभावित ना होना, जो हैं ;जितना हैं उसके बहुत खुस रहना ईश्वर को धन्यवाद देते रहना और घर में हमेशा कुछ-ना-कुछ करते रहना।
आज भी, जब भी नौकरी से छुट्टी मिलती हैं तो घर भाग कर माँ बाप से मिलने का मन करता हैं उनके पास बैठने और बातें करने में जो सुकून हैं वो शायद दुनिया में कही ना मिले। पिताजी एवं परिवार के बड़े बुजुर्गों के पास बैठ कर उनके जीवन का संघर्ष सुनना उनके अनुभव जानना शायद दुनिया का सबसे बड़ा मोटीवेशन होता हैं वो शायद हमे बड़े बड़े मॉटिवेशनल स्पीकर के पास भी नहीं मिलेगा।
पिताजी का ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़ाव मुझे पूरे जीवन का सार समझा देता हैं ; मैंने मेरे पिता से सीखा कि जीवन में कोई छोटा बड़ा नहीं होता मैं हमेशा देखता हू कि मेरे पिता का जुड़ाव सबसे ज़्यादा गाँव के हाशिये/कमजोर तबके के लोगो के साथ हैं पिताजी के इस गुण का मुझे मेरी राजकीय सेवा में ग़रीब/ कमजोर तबके के लोगो से किस तरह कनेक्ट होना हैं किस तरह संवाद स्थापित करना हैं सिखाया।
सीमित संसाधनों में जीवन कैसे जिया जाता हैं शायद मुझे लगता हैं मेरे पिता जिन्होंने ऊँट गाड़े से मेहनत मज़दूरी करके हमे पढ़ना ख़ुद की कोई प्रकार की अपेक्षा हमसें कभी नहीं करना २ कपड़ों में 1-2 साल निकाल देना, 200 रू की जुती से 2-3 साल निकाल देना आज के जिस जमाने में हम रह रहे हैं ये बातें हमे सिर्फ़ कहानियाँ लगती हैं हम सहज विश्वास ही नहीं कर पाते हैं मुझे लगता हैं इससे ज़्यादा पर्यावरण मित्र जीवन नहीं हो सकता हैं।
मैंने मेरे पिता के मुँह से कभी ना शब्द नहीं सुना इस दृष्टि से देखू तो भले ही भौतिक रूप से उनके पास संसाधनों का अभाव रहा हो पर दिल से दुनिया का सबसे धनवान व्यक्ति समझता हूँ।
जब भी मेरे पास यहाँ आते हैं तो मेरे पूरे स्टाफ से जिस तरह आत्मीयता से मिलते हैं बातें करते हैं जब मैं उनको कॉल करता हूँ तो मुझे मेरे स्टाफ का नाम लेकर उनका हाल चाल स्वास्थ्य पूछना शायद ये ही वो गुण हैं जो लोगों के दिलों में राज करते हैं ।
पिताजी के जीवन की बहुत कहानियाँ हैं जो कभी उदास मन को खिलखिला देती हैं तो कभी परेशान मन को रास्ता दिखा देती हैं, कभी पिताजी-माताजी की हल्की नोक झोंक हम पति पत्नी को हँसने का मौक़ा दे देती हैं और सीख भी।
पिता के साथ रिश्ता जितना गहरा हो उतना ही कम हैं पिता के मज़बूत कंधों में वो क्षमता हैं कि वो पूरे ब्रह्माँड का भार झेल जाए तो मनुष्य की परेशानियाँ तो उनके सामने कुछ भी नहीं हैं।
आईपीएस बनने के बाद ट्रेनिंग पूरी होने के बाद जन सेवा में पहले कदम पर पिता को सैलूट करना जीवन का सबसे सुखद क्षण रहा जिसका मुझे हमेशा गर्व रहेगा।
पिताजी से पहली पीढ़ी याद करूँ तो मैंने मेरे दादाजी को कभी नहीं देखा उनका देहांत हमारी समझ से पहले ही हो गया था दादाजी कि पीढ़ी से परिवार में छाया के रूप में सिर्फ़ दो सदस्य बचे हैं -
भागीरथ जी
भगवाना राम जी
दादा जी भागवाना राम जी ने शारीरिक शिक्षक के रूप में सर्वोच्च शिक्षक सम्मान राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कर हमारे परिवार को एक नई ऊँचाई और पहचान दी
किसी ने सच ही कहा हैं पिता तो संघर्ष की आँधियों में हौसलों की दीवार की तरह हैं।
मन में बहुत हैं पर कभी फ़ुरसत में लिखूँगा पिताजी के बारे में।
पिताजी को एक बार पुनः सादर प्रणाम।
- पिताजी आपका स्नेही पुत्र, प्रेमसुख डेलू, आईपीएस
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