भेंट में उपस्थित सभी सम्मानित व्यक्तियों ने मिश्रजी के बारे में बहुत सी बातें कहीं जिनमें एक बात मुख्य रूप से उभर कर आई कि मिश्रजी बहुत ही सहनशील स्वभाव के व्यक्ति हैं जिन्होंने 5 वर्ष में सचिवालय को जो ऊंचाइयां प्रदान की है उसके लिए सदैव मॉरीशस की धरती पर उन्हें याद किया जाएगा। उन्होंने स्वयं खड़े रहकर विश्व हिंदी सचिवालय के भवन का निर्माण करवाया है, एक-एक ईंट को जुड़ते देखा है. जैसे कोई अपने घर का निर्माण करवाता है। मिश्रजी के लिए संवैधानिक पद की गरीमा और अपने कर्मठ स्वभाव का साथ-साथ निर्वाह करना बहुत कठिन रहा है परन्तु उन्होंने सदैव मुस्कान बनाएं रखी।
उनके कार्यकाल में दो बड़े कार्य हुए हैं। पहला विश्व हिन्दी सचिवालय को अपना एक शानदार भवन मिला और दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशन धरती पर 2018 में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। फिर भी बहुतों को उनसे बहुत सी शिकायतें रही हैं जिनमें मैं भी शामिल हूं, लेकिन जब आपका स्थान ऊंचा हो और पंख सोने के हों और उन पंखों पर ढेरों अपेक्षाओं का भार हो तो यह स्थिति होना स्वाभाविक है। महादेव की नगरी बनारस से जुड़े मिश्रजी और उनके मॉरीशस प्रवास पर महाकवि दिनकर जी की यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं...
"लेना अनल-किरीट भाल पर, ओ आशिक होनेवाले.
कालकूट पहले पी लेना, सुधा बीज बोनेवाले."
मिश्रजी को उनके भावी जीवन में नई उच्चाइयां मिले यही शुभकामनाएं हैं।
-सविता तिवारी
संस्थापक, भारत-मॉरीशस डिजिटल प्लेटफॉर्म
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