सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, राजस्थान के आयुक्त पद से सेवानिवृत्त हुए ‘छपरी वाले बाबा’ हमेशा याद आएंगे। मर्म समझने वाले बाबा की छवि के साथ आईएएस अधिकारी एस.एस. बिस्सा ने जो काम किया वो मिसाल है। कार्यकाल में रहते अपने आखरी सलाम के साथ बिस्सा से ऑफिसर्स टाइम्स के साथ बांटे अपने यादगार अनुभव।
कहते हैं प्यार से दुनिया जीती जा सकती है। ...और गैरों को भी अपना बनाया जा सकता है। फिर बात प्रशासनिक मसलों को हल करने की हो, तो संवेदनशीलता बढ़ जाती है। ऐसे में किए गए प्रयोगों को अलग ही पहचान मिलती है। एक नाम भी जरूर मिलता है। ‘छपरी वाले बाबा’ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्याम सुंदर बिस्सा देश के ऐसे आईएएस हैं, जिन्हें ‘छपरी वाले बाबा’ के नाम से जाना जाता है। जेल सेवा से 1996 में सीधे भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में आने वाले देश के पहले अधिकारी बिस्सा की ‘छपरी’ बेहद चर्चित रही है। उन्होंने आम आदमी के प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को लेकर किसी भी नकारात्मक नजरिए को तोडऩे का सफल प्रयास किया। उनकी छपरी मशहूर हुई। क्योंकि उस छपरी में दर्द बांटा गया। पीड़ा सुनी गई। डूबते को सहारा दिया गया और उस तबके को बराबर बिठाया गया, जो पूरे जीवन में बराबर बैठने की उम्मीद भी नहीं कर सकता।
27 साल जेल सेवाओं को देने के बाद 1996 में सुपर टाइम स्केल के साथ प्रशासनिक सेवाओं में आए बिस्सा ने 31 जुलाई, 2012 को सेवाओं से अलविदा कह दिया। वो सेवानिवृत्त हो गए, लेकिन उनकी छपरी आज भी सलामत है। ...और हमेशा रहेगी। यादों के एक गुलदस्ते के साथ, जिसमें आम आदमी का दर्द बांटने के एहसास हमेशा जीवंत नजर आएंगे। बुजुर्ग बाबा की छवि को लेकर उन्हें बड़ी पहचान मिली। इस बारे में बिस्सा भी रोमांच के साथ कहते हैं, ‘बाबा की छवि तो बननी ही थी। मैं 54 साल की उम्र में आईएएस जो बना था। जैसे ही यहां आया, लोगों ने भी वैसे ही स्वीकार किया। उनका दर्द समझा, तो बाबा कहने लगे। फैसलों के लिए बूंदी में छपरी की शुरुआत हुई और नागौर में छपरी को मुकाम मिला, तो लोग ‘छपरी वाले बाबा’ कहने लगे।’ भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में अपने सफर की शुरुआत बूंदी कलक्टर पद से करने वाले बिस्सा कहते हैं, ‘जब मैं बूंदी गया, तब गूर्जर आंदोलन चल रहा था....
0 comments:
Post a Comment