भारतीय थल सेना में ले. कर्नल रह चुके अतुल ने आईआईएम अहमदाबाद से प्रबंधन कोर्स किया। यहीं पर कैंपस प्लेसमेंट से उनकी एंट्री एफएमसीजी की बादशाह कंपनी आईटीसी में हुई। ...और शुरु हुआ एक नया और रोमांचक सफर।
दुनिया की शीर्ष एफएमसीजी कंपनियों में शुमार आईटीसी लिमिटेड के बीएम, जयपुर अतुल यादव और उनकी पत्नी मोहिनी के दाम्पत्य, पारिवारिक और कामकाजी जिंदगी के अनछुए पल, उन्हीं की जुबानी।
अतुल मेरे अच्छे और सबसे सच्चे दोस्त हैं। यही वजह है कि हम दूर रहकर भी करीब रहे और पास होकर हमने अपने आने वाले कल को बेहतर से बेहतर बनाने के सच्चे प्रयास किए। मेरी सुबह की शुरुआत अतुल से ही होती है। यह पर्सनल है, लेकिन सच कहूँ, तो सुबह की चाय हमेशा मुझे अतुल ही पिलाते हैं। फिर हर रोज हम निकल पड़ते हैं, अपनी जिंदगी के सबसे बेहतरीन निर्णयों को लेने के सफर पर। ...क्योंकि बच्चों की पढ़ाई, घर-गृहस्थी से जुड़ा कोई डिसिजन लेना हो या फिर पारिवारिक जिम्मेदारियों से जुड़ा कोई फैसला, हमारा हर नया चैप्टर मॉर्निग वॉक पर ही शुरु होता है।
मुझे याद है हमारे सभी अहम फैसले मॉर्निग वॉक पर ही हुए हैं। यह वाकई खुशनुमा एहसास भी है। आप नई सुबह, नई उमंगों के साथ नए-नए निर्णय लेते हैं और वही निर्णय आपकी और आपके परिवार की दिशा तय करते हैं। वैसे मेरा ही नहीं अतुल का भी गहराई से मानना है कि एक पति-पत्नी को हर सुबह के खूबसूरत पल अपने साथी के साथ ही बांटने चाहिए।
मैं टीचिंग प्रोफेशन से रही हूँ। करीब 14 साल मैंने टीचिंग प्रोफेशन को डिवोट किए हैं। लेकिन इन दिनों अपना पूरा वक्त बच्चों के लिए समर्पित है। हमारे दो प्यारे लाडले हैं। जहान फिलहाल ट्वैल्थ स्टैंडर्ड में है और विराज नाइंथ में। जहान और विराज के साथ मैं पूरा वक्त अतुल को देती हूँ। ऐसा नहीं है कि हम दोनों लड़ाई नहीं करते। प्यार में तकरार जरूरी है, वर्ना वो मजा ही कहां। ...लेकिन अतुल पल भर में सरेंडर कर देते हैं। अच्छा लगता है। एहसास होता है कि वो मेरी फिलिंग्स को पूरी तवज्जो देते हैं। इनकी गलती होती है, तो तुरंत स्वीकार कर लेते हैं। कभी बुरा भी नहीं मानते। लेकिन अपने काम और रिश्तों के प्रति बेहद ईमानदार हैं। ...और हां, ना कभी नहीं करते। अतुल की यह सबसे खास बात है कि वे मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। मैंने कभी नहीं देखा कि कोई इनके पास आया हो और इन्होंने उसकी मदद ना की हो। यह एहसास बेहतरीन है। इससे हमेशा महसूस होता है कि जीवनसाथी हो, तो ऐसा। जो संपूर्ण हो। अतुल के साथ एक सुरक्षा की भावना का एहसास होता है।
मोहिनी मेरी फेवरेट हीरोइन
हरियाणा के महेन्द्रगढ़ के पास बुद्धपुर से हमारा परिवार ताल्लुक रखता है। लेकिन मेरी परवरिश की बात करूं, तो वह अजमेर से हुई है। यहीं से मैंने पढ़ाई-लिखाई की और 1983 में नेशनल डिफेंस एकेडमी के लिए मेरा चयन हो गया। यह रोमांचक मोड़ था मेरी जिंदगी का। अकादमी में ट्रेनिंग लेने के बाद 1987 में मुझे कमीशन मिला और बीस साल मैंने सेना की जिंदगी को पल-पल जिया। वहां जोश था। जुनून था और जज्बा भी। कश्मीर में जब माहौल गर्म था, उस दौर में मैं 12 साल वहां पोस्टेड रहा। फिर मुंबई, दिल्ली और नॉर्थ-ईस्ट में भी रहा। ...लेकिन उस जज्बे को सलाम जो मैंने सेना के जवान से लेकर ऑफिसर तक हर एक में 20 साल तक देखा। कमीशन जॉइन करने के तीन साल बाद मेरी शादी मोहिनी से हुई। सेना की नौकरी के दौरान मैं अपने परिवार को कम समय दे पाया। इसीलिए अब परिवार के लिए पूरा वक्त निकालता हूँ। मुझे हमेशा लगता है कि सिंगल पेरेंटिंग बेहद मुश्किल है। लेकिन अब परिवार से जुड़ी ज्यादातर चीजों को मोहिनी मैनेज कर लेती हैं। अपने लिए मैं गोल्फ खेलता हूँ और अपनी 93 मॉडल बुलट को बेहद पसंद करता हूँ। सच बताऊं, तो बुलट लाजवाब है। जब मैंने ली थी, तब हम 300-400 किमी. यूं ही निकल जाया करते थे। बड़ा इंजॉय किया करते थे।
मुझे अच्छे से याद है, हमें कई महीनों बाद छुट्टी मिला करती थी। परिवार की याद आती, लेकिन चिट्ठी में लिखे उनके शब्दों में हम खुशियां तलाशा करते थे। शादी के बाद से ही मैं कश्मीर में रहा, तो मोहिनी आठ-नौ साल तक मुझे हर रोज चिट्ठी लिखा करती थीं। यह लाजवाब अनुभव था। घर की हर छोटी-बड़ी बात मुझे रोज चिट्ठी में मिल जाया करती थी। यूं तो इस दौर में हम एक-दूसरे से दूर थे और छुट्टियों में ही मिला करते थे। लेकिन चिट्ठियों ने हमें पल भर भी दूरी महसूस नहीं होने दी। मैं भी चिट्ठियां लिखा करता था, जो मोहिनी ने आज भी संभाल कर रखी हैं। मोहिनी की भेजी हजारों चिट्ठियां मेरे पास थीं। जब नॉर्थ-ईस्ट में पोस्टिंग हुई, तो हम दोनों के लिए बड़ी की कश्मकश की स्थिति हो गई कि अब इन चिट्ठियों का क्या करें? बड़े भारी मन से हमने चिट्ठियां छांटी और उनमें से कुछेक अपने पास रखी, बाकी को जलाया। बहुत दर्द हुआ, क्योंकि वो हमारे ऐसे सालों की जुबां थीं, जब हम बिना मिले भी एक-दूसरे के बेहद करीब थे। मोहिनी के पास हैं सौ से ज्यादा चिट्ठियां आज भी हैं, लेकिन बेहद सुरक्षित रखी हैं। मैं अब भी तलाश करने लगूं, तो बिना इनसे पूछे शायद ही ढूंढ पाऊं। वैसे भी जब बूढ़े हो जाएंगे, तो उन चिट्ठियों में अपने खूबसूरत पलों के एहसास को जिया करेंगे। फिल्में देखना मुझे पसंद नहीं। ...लेकिन हां, फिल्म की बजाय तीन घंटे मैं अपनी मोहिनी के साथ रहना पसंद करता हंू। वो मेरी फेवरेट हीरोइन हैं। मेरे हर फैसले में मोहिनी मेरा साथ निभाती हैं। यही तो जिंदगी है।
देवेश्वर का विजन ही आईटीसी की सफलता
ने आर्मी के बाद जैसे ही कॉर्पोरेट का रुख किया, तो बहुत कुछ जानने का मौका मिला। आईटीसी में एंट्री हुई, तो तेजी से बढ़ती कंपनी का हिस्सा बनकर इसे और आगे बढ़ाने के प्रयास किए। क्योंकि कंपनी के चेयरमेन वाई.सी. देवेश्वर के विजन को मैंने करीब से जाना है। वे बिजनेस बढ़ाना भी जानते हैं और बिजनेस से बढ़कर सोशल रेस्पॉनसिबलिटीज पर भी पूरा फोकस करते हैं। आज कंपनी 3 लाख से ज्यादा बच्चों का देशभर में शिक्षा का जरिया बनी हुई है। कंपनी के ही सहयोग से 39 हजार से ज्यादा महिलाएं एंटरप्रेन्योशिप में हैं। दो लाख से ज्यादा किसानों को पशुपालन में सहयोग मिल रहा है और 40 लाख से ज्यादा किसान ई-चौपाल से जुड़े हुए हैं। यह बेमिसाल अनुभव है कि अपने बिजनेस के विस्तार के साथ आईटीसी इतना कुछ कर रही है। सही मायने में आईटीसी देश को समर्पित यह ऐसी सेवा है, जो अनमोल है। ...और यह विजन वाई.सी. देवेश्वर की देन है। देवेश्वर जितनी प्राथमिकता अपनी कंपनी और व्यापार को बढ़ाने में देते हैं, उतनी ही प्राथमिकता देश के विकास को भी देते हैं। इसीलिए देवेश्वर का विजन आईटीसी के हर साथी को गर्व करने का मौका देता है।
- अतुल यादव
Dear Atul,
ReplyDeletethis is my advise to bind ur all letter in a book shape(change the name) with the help of Praveen Jhakhar and release it for youngster,u can gat royalty in lacs.
Dr.Mahesh Agarwal
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