भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के चेयरमेन विजय प्रकाश अग्रवाल से एक्सक्लूसिव बातचीत के चुनिंदा अंश।
सीएसआर के मामले में आप देश में सबसे आगे हैं? कोई खास वजह?
हवाई अड्डे के निर्माण को निवेश के नजरिए से देखा जाता है। ऐसा निवेश जो आने वाले कुछ सालों में 3.8 गुणा वृद्धि सरकार को देता है। यह लाभ के सिद्धांत पर काम करता है। हवाई अड्डे जब विकसित होते हैं, तो उसके आस-पास बसे लोगों को लगता है कि उन्हें इसका लाभ नहीं मिलता। लेकिन यह सच नहीं है। आस-पास के इलाके विकसित होने लगते हैं। रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। इन्हीं लोगों के लिए शिक्षा, चिकित्सा जैसी सुविधाएं बढ़ाने के लिए हम सीएसआर के तहत सहयोग करते हैं। हम आगे हैं, तो इसकी सबसे खास वजह हमारे नेटवर्क की मजबूती है। देशभर में हवाई अड्डे हैं, जिन पर प्रशिक्षित अफसर हैं। इन अफसरों, कर्मचारियों के शिक्षित परिवार हैं। इनमें जिम्मेदार महिलाएं हैं, जो सीएसआर की समझ रखते हुए सबको साथ लेकर चलने में अहम योगदान दे रही हैं। हम सेवाओं से खास और सीएसआर के जरिए आम लोगों का दिल जीतने में कामयाब हो रहे हैं।
देश में फिलहाल 29 कंपनियों के विमान उड़ान भरते हैं। इस संख्या को बढ़ाने के लिए कोई योजना?
प्राधिकरण का काम विमान कंपनियों और उनके यात्रियों को सुविधाएं मुहैया करवाना है। जिसके लिए देशभर में हमारी पूरी टीम मुस्तैदी से जुटी हुई है। हां, नई कंपनियों के लिए प्राधिकरण के दरवाजे खुले हैं। इसके लिए हम नई कंपनियों को बेहतर शुरुआत के लिए कई तरह के डिस्काउंट्स भी दे रहे हैं। साथ ही फ्री नाइट पार्किंग सुविधा को भी प्राधिकरण ने मंजूरी दे दी है। इससे कनेक्टिविटी में सुविधा होगी और विमान कंपनियों को भी लाभ होगा।
हवाई यातायात दुनिया का सबसे सुरक्षित साधन है? इसके पीछे मूल कारण क्या है?
वास्तव में उड्डयन क्षेत्र में एक छोटी सी चूक की कीमत बहुत भारी होती है। इसीलिए इस पर चैक पॉइंट ज्यादा होते हैं। जहां भी रिस्क फैक्टर लगता है, विशेषज्ञ बारीकी से अध्ययन करते हैं। फिर भी कोई मिसिंग आए, तो दोषी पर त्वरित कार्यवाही की जाती है। इससे चूक की संभावनाएं ना के बराबर हो जाती हैं और हम हवाई यातायात को सुरक्षित बना पाते हैं।
इसरो के साथ गगन प्रोजेक्ट का पहला चरण 2008 में पूरा हो चुका है, लेकिन दूसरे और तीसरे चरण में क्या चल रहा है?
पहले चरण में हमने सुरक्षा मानकों से जुड़े कंसेप्ट को स्थापित करने में कामयाबी हासिल की। दूसरे और तीसरे चरण में कंसेप्ट को स्थापित करने के बाद उसे इक्यूप किया जा रहा है। जिसमें सर्टिफिकेशन वेलिडेट होता है। सीधे तौर पर देखें, तो यह 99.99998 डिग्री एक्यूरेसी पर काम करने वाला प्रोजेक्ट है। यह हवाई यातायात को ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए है।
आने वाले समय में टे्रफिक रेवेन्यू एयर नेविगेशन सर्विस (एएनएस) को जाएगा, तो नॉन ट्रेफिक रेवेन्यू से आप देशभर के एयरपोर्ट कैसे चला पाएंगे?
एक पिता के दो बेटे हों, तो कभी न कभी दोनों का बंटवारा पिता को करना ही होता है। ऐसे में दोनों बेटों की खुशी का ख्याल पिता जरूर रखता है। इसी तरह एएनएस के निर्माण से प्राधिकरण को कोई आर्थिक नुकसान नहीं होगा। इस बात का ध्यान हमने रखा है। यह सही है कि टे्रफिक रेवेन्यू एएनएस में जाएगा, लेकिन हम नॉन टे्रफिक रेवेन्यू में इस तरह का तालमेल बिठा लेंगे, जिससे प्राधिकरण को जरा भी नुकसान नहीं होगा। यह बंटवारा पिता के उन दो बेटों के बंटवारे जैसा ही है, जिसमें दोनों की खुशी ध्यान में रखी गई है।
कार्गो के जरिए आप प्राधिकरण का मुनाफा बढ़ा सकते हैं? फिर बढ़ाते क्यों नहीं?
यह सही है कि कार्गो के जरिए अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। विकसित राष्ट्रों में कार्गो जीडीपी में महत्त्वपूर्ण भूमिका दर्ज करा रहा है। हमारे यहां भी अपार संभावनाएं हैं। कार्गो को लेकर प्राधिकरण में काम चल रहा है। इस संबंध में कस्टम, इलेक्ट्रोनिक क्लीयरेंस, चैकिंग पॉइंट, क्षमता, मिसमैचिंग जैसे मामलों पर हम काम कर रहे हैं। जैसे ही चैकपॉइंट क्लीयर होंगे, हम तुरंत प्रभाव से इस ओर सकारात्मक कदम उठाएंगे।
देश में बहुत से एयरपोर्ट नॉन वर्किंग हैं? इनसे खर्च चलाने जितना पैसा भी नहीं आता?
आपके राजस्थान को ही लें, तो जैसे कोटा एयरपोर्ट फिलहाल नॉन वर्किंग है। इस एयरपोर्ट की क्षमता बड़े जहाज की नहीं है। इसी तरह देश के कई हवाई अड्डे हैं। इसलिए छोटे विमान यहां कनेक्ट किए जा सकते हैं। अगर विमान कंपनियां आगे आती हैं, तो छोटे विमानों की सेवाओं के लिए प्राधिकरण तैयार है।
0 comments:
Post a Comment