जब भी कोई विकलांग या बुजुर्ग मुग्धा से मिलने आता, वो कुर्सी से खड़ी होकर गेट के बाहर आ जाती। कहतीं लो, मैं आ गई आपके बीच। ...और वहीं खड़े-खड़े फैसला कर देतीं।’
‘मैंने 12 कलक्टर यहां से आते-जाते देखे हैं। उनके साथ काम किया है। ...लेकिन मुग्धा मैडम जैसा कोई नहीं आया। मैडम ने गरीब से लेकर हर जरूरतमंद का दर्द महसूस किया। उन्होंने शहर में जो कमी देखी, उसके लिए अधिकारियों को तुरंत आदेश दिए। वो कहा करती थीं कि हमें रोड नम्बर एक पर फुटपाथ बनवाना चाहिए, ताकि ठेले वाले और गरीब अपनी रोजी-रोजी आराम से चला सकें। उन्हें कोई खदेड़ ना सके। वर्ना उनका परिवार कैसे चलेगा। ...लेकिन अब सब चौपट हो गया। उन्होंने शहर की कायापलट के लिए बजट भी सरकार से मंगवाया, लेकिन उनके जाने के बाद सब चौपट कर दिया। वो होतीं, तो अब तक हमारा शहर और झुंझुनूं जिला बहुत आगे होता। सीकर से भी आगे होते हम। ...और तो और जब भी कोई विकलांग या बुजुर्ग उनसे मिलने ऑफिस आता, वो खुद कुर्सी से खड़ी होकर गेट के बाहर आ जाती। कहतीं लो, मैं आ गई आपके बीच। ...और वहीं खड़े-खड़े फैसला कर देतीं।’
झुंझुनूं कलेक्ट्रेट परिसर के चौड़े बरामदे में एक कर्मचारी जैसे ही पूर्व जिला कलक्टर मुग्धा सिन्हा का कार्यकाल इन शब्दों में बयां करने लगा। पास बैठा एक और व्यक्ति तुरंत बोल पड़ा, काश! मुग्धा वापस आ जाएं! क्योंकि मैडम ने जो किया, वाकई कोई कलक्टर नहीं कर पाया। लेकिन सरकार ने उन्हें चार महीने ही यहां टिकने दिया। सही कहते हैं, भले लोगों को एक जगह टिकने कौन देता है।
इन चेहरों की चमक साफ बयां करती है कि मुग्धा सिन्हा ने चार महीने के कार्यकाल में यहां जादू कर दिया था। गौरतलब है कि 1999 बैच की आईएएस अधिकारी मुग्धा सिन्हा 6 सितम्बर, 2010 से 1 फरवरी, 11 तक झुंझुनूं में जिला कलक्टर के पद पर रहीं। 30 जनवरी, 11 को जारी एक आदेश में री-शफल के तहत मुग्धा का तबादला श्रीगंगानगर कलक्टर कर दिया गया।
इन दिनों मुग्धा केन्द्रीय मंत्री आनन्द शर्मा के यहां ओएसडी का कामकाज देख रही हैं। मुग्धा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, बंगलुरु से नेगोशिएटिंग स्टे्रटजीज एण्ड पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप पर टे्रनिंग भी ले चुकी हैं और वह जहां पदस्थापित रही हैं, हमेशा अपनी छाप छोड़कर आगे बढ़ती रही हैं। झुंझुनूं में भी कुछ ऐसा ही रहा। ...लेकिन पीछे रह गईं, तो केवल यादें और उम्मीदें, जो आज भी जिंदा है। इस आस में कि मैड़म वापस आएंगी।
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