किराणा वाले का बेटा जब IAS बना, जरूरतमंदों का मसीहा बनकर उभरा


चेन्नई।
हीरो केवल सिनेमा के पर्दे पर ही नहीं होते, रीयल लाइफ हीरो भी होते हैं। साधारण घरों से निकलकर दुनिया का दिल जीतने का काम कठिन है, लेकिन नामुमकिन नहीं। क्योंकि रीयल लाइफ हीरोज ऐसा करते देखे जाते हैं। शायद यही वजह है कि बचपन से ही क्विज के शौकीन किराणा वाले का बेटा जब आईएएस बना, तो लोगों के दिलों पर छा गया। हम बात कर रहे हैं 2013 बैच में चौथी रैंक हासिल कर आईएएस बने डॉ. एल्बी जॉन वर्गीज की।


केरल के एर्नाकुलम जिले के छोटे से कसबे पिरावोम से यह संघर्ष की कहानी निकलती है। परिवार की बड़ी जिम्मेदारियों के बीच दसवीं के बाद स्कूल ड्रॉप करने वाले पिरावोम के जॉन वर्गीज अब केवल किराणा वाले के नाम से नहीं जाने जाते, बल्कि अपने आईएएस बेटे एल्बी के पिता के तौर पर पहचाने जाते हैं। उनकी पत्नी सलौमी वगीज लैब असिस्टेंट थीं। जॉन खुद नहीं पढ़ पाए, लेकिन अपने दोनों बेटों एल्बी और अतुल को पढ़ाने में कामयाब रहे। एल्बी ने जुबली मिशन मेडिकल कॉलेज, त्रिचूर से एमबीबीएस करने के बाद सिविल सेवाओं में जाने का पूरा मानस बना लिया और छोटा भाई अतुल कालीकट से बीटेक करके इंजीनियर बन गया।

एल्बी ने मेडिकल की पढ़ाई के दौरान इंटर्नशिप में अपने सीनियर से मिले मोटीवेशन को ताकत में बदल दिया। इसी मोटीवेशन के बूते 2013 में पहले ही प्रसास में एल्बी ने आईएएस क्लीयर कर लिया। हॉस्पिटल की नौकरी करते-करते केवल आठ महीने की पार्टटाइम तैयारी से एल्बी ने सिविल सेवाओं में देश में चौथी रैंक हासिल की, जो खासी चर्चा में रही। अपने व्यस्त शिड्यूल में भी आईएएस क्लीयर करने को लेकर एल्बी कहते हैं, 'मैं शुरू से काफी फोकस्ड रहा हूं। बचपन से ही क्विजर रहा हूं। पब्लिक स्पीकिंग और क्रिएटिव राइटिंग करता रहा हूं। जिसका पूरा फायदा मुझे सिविल सर्विसेज की तैयारी में मिला।'

सिविल सेवाएं जॉइन करते ही एल्बी ने गैरकानूनी माइनिंग करने वाले माफियाओं पर शिकंजा कस दिया। अतिक्रम और गुंडागर्दी से कब्जाई जमीनों को मुक्त करवाया। सहायक कलेक्टर रहते ही ट्रांसजेडर्स के लिए इंटीग्रेटेड रीहैबिलिटेशन सेंटर शुरू किया, जिसके लिए एल्बी खासे चर्चित हो गए। अपनी सेवाओं के दौरान ही एल्बी ने स्वच्छ भारत मिशन में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर विशेष फोकस किया। एल्बी कहते हैं, 'हमने 100 प्रतिशत डोर टू डोर कचरे के संग्रहण का लक्ष्य रखा और सॉलिट वेस्ट को रीसाइकिल करने तक की प्रकिया को प्रबंधित किया।'

तूतीकोरिन कॉर्पोरेशन में अपनी यादगार सेवाओं को शेयर करते हुए एल्बी कहते हैं, 'हम देश में पहली ऐसी लोकल बॉडी बने जिसके आह्वान पर एक्सटेंडेट प्रोड्यूसर रेस्पॉन्सिबलिटी प्रिंसिपल पर काम हुआ। हमने करीब ढाई लाख प्लास्टिक रैपर्स निर्माता कंपनियों को वापस भिजवाए। शहर में सिंगल यूज प्लास्टिक और प्लास्टिक के वैकल्पिक उपायों को अपनाने पर फोकस किया। रिटेलर्स ऐसोसिएशन और रिटेल वेंडर्स ने हम पर भरोसा जताया और हम सबने मिलकर शहर को नई पहचान दी। तूतीकोरिन के ही करीब 2 किलोमीटर के बीच रोड पर हमने कार फ्री संडे  की शुरूआत की, जिसको स्थानीय जनता ने न केवल सराहा, बल्कि अपना समझ कर सपोर्ट किया। यहीं पर मुत्थू नगर बीच पर वॉटर स्पोट्र्स सुविधाएं विकसित की, जो जनता को बेहद पसंद आई।'

फिलहाल साउथ चेन्नई कॉर्पोरेशन में रीजनल डिप्यूटी कमिशनर के पद पर सेवाएं दे रहे एल्बी लगातार प्रयोग कर रहे हैं। यहां रहते एल्बी और उनकी टीम ने चेन्नई में रोजाना इकट्ठा हो रहे करीब 5000 टन कचरे का बेहतरीन प्रबंधन शुरू किया है। यहां माइक्रो कंपोजिट सेंटर्स बनाए गए हैं। जनता को सरकारी भरोसे से जोड़ा जा रहा है। लगातार रेजिडेंशियल वल्फेयर एसोसिएशंस से बातचीत और मुलाकातें की जा रही हैं। मुहिम कुछ इस तरह छेड़ी गई है कि जनता पूरी तरह सरकारी सिस्टम का साथ दे रही है। इतना बड़ा प्रबंधन एल्बी कैसे करते हैं? वह कहते हैं, 'मैं हमेशा लोगों की बात ध्यान से सुनता हूं। समझने का प्रयास करता हूं कि हम कैसे बेहतर सेवाएं दे सकते हैं। हम कैसे सरलता से लोगों को उपायों से जोड़ सकते हैं। मेरा प्रसास होता है कि हर फोन, मैसेज और फीडबैक का उचित स्तर पर जवाब दिया जाए और उनसे कोई उपाय निकल सकता है, जो जनता को सुविधा दे, तो उस पर काम किया जाए। सच कहूं तो मेरे शुरूआती दिनों का सॉलिड वेस्ट मैंनेजमेंट प्रोजेक्ट भी सुझावों और फीडबैक्स की वजह से तैयार हुआ। हमें बहुत सारे सफाई कर्मचारियों से फीडबैंक मिले, उन्होंने सरकारी सिस्टम की खामियों को हमारे सामने खुलकर कोसा भी। इसी से हमें उपाय सूझे और हम उन कर्मचारियों और जनता की सुविधा के लिए अपने बेहतर प्रयास कर पाए।'

एल्बी आज भी हर रोज उपाय खोजते नजर आते हैं। कभी फीडबैक्स में, तो कभी कमेंट्स में। मलयालम में लेखन पसंद है, इसलिए उसे भी नहीं भूलते। कई लघु कथाएं लिख चुके एल्बी कहते हैं, 'हम आईएएस हैं, तो जनता को सिस्टम से और सिस्टम को जनता से सरलता से जोडऩा हमारी जिम्मेदारी है। जब काम जनता के लिए कह रहे हैं, तो उन्हीं की परेशानियों को सुन और समझ कर सुलझाया जाए, तो परिणाम बेहतर निकलते हैं। मैं आज जो भी कुछ कर रहा हूं, मेरे बाबूजी और मां के संघर्षों का परिणाम है। यहां तक कि मैं जो भी हूं, सब उनकी वजह से हूं। उनके संस्कार, उनकी परवरिश और दुनिया को देखने का नजरिया ही मेरी जिंदगी है।'

- प्रवीण जाखड़
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