रोमियो जूलियट और अंधेरा इस चेक उपन्यास को पढ़ने की एक जो बड़ी वजह थी, प्रख्यात हिंदी कथाकार निर्मल वर्मा का अनुवादक होना । निर्मल वर्मा का चेक भाषा से हिंदी में हुआ यह अनुवाद इस कदर सरल, सहज और प्रवाह में है कि आप भूले रहते हैं कि यह हिंदी का नहीं है। बीच-बीच में कहीं जब वे चेक भाषा के शब्द जस के तस लिखते हुए अर्थ बताते हैं, केवल तब ही आभास होता है लेकिन फिर यह रोचकता को और बढ़ा देता है।
चेक लेखक यान ओत्चेनाशेक के कथानक को दूसरे विश्व्युद्ध के अँधेरा का उजला लेखन कहा जा सकता है। 1924 में जन्में यान उस समय युवावस्था में दाख़िल हो रहे थे जब समूचा यूरोप महायुद्ध की विभीषिका से टकरा रहा था। नाज़ियों का कहर चैस्लोवाकिया पर भी उतर आया था और उस वक्त कथा का नायक पॉल उम्र के सबसे नर्म और ख़ूबसूरत हिस्से में दाख़िल हो रहा था। विज्ञान में गहरी रूचि रखने वाला छात्र पॉल युवा चेकोस्लोवाक लड़का तो दूसरी ओर नर्तकी बनने का ख़्वाब संजोए यहूदी लड़की एस्थर। ये दो छोर ही तो थे जो एक हो जाने को आतुर थे, अधीर थे। पॉल, एस्थर से उस समय मिलता है जब नाज़ी सेना उसे किसी अज्ञात कैम्प में भेजने का हुकुम सुना चुकी होती है। एस्थर के डॉक्टर पिता और मां को किसी यातना ग्रह में भेज दिया गया है जहां वे जिंदा भी हैं या नहीं, एस्थर नहीं जानती । इस टूटी बिखरी एस्थर को पॉल यूं बेसहारा नहीं छोड़ पाता। प्राग शहर में वह अपने पिता की टेलरिंग शॉप के पीछे खाली पड़े छोटे से कमरे में उसे छिपा देता है। उसके साथ अपना खाना साझा करते हुए हुए, वह प्रसन्न है। एस्थर के रहने से सुवासित हुए उस अकेले कमरे की गंध में डूबते वह कभी उलझता तो कभी प्रेम में डूबता चला जाता।
पॉल का शहर प्राग किसी समय नाज़ियों को कोसने लगता तो कभी अपनी तबाही के लिए यहूदियों को ज़िम्मेदार मानने लगता। जो नज़रें लड़की को मिली इस पनाह से इत्तेफाक नहीं रखती थी ,उससे निजात पाना चाहती थीं। उसका मानना था कि नाज़ी सेना जो रोज़ फ़ौजी दमन के बाद शहर के चौराहे पर मरनेवालों के नाम की सूची टांग देती थी, एक दिन यहां आ धमकेगी। नाज़ी ढूंढ-ढूंढकर यहूदियों को मौत के घाट उतार रहे थे। अफवाहें और दमन शहर के लोगों को भी दो फाड़ में तब्दील करती जाती थीं । इस भय का भय बताकर पॉल के कुछ पड़ोसी मासूम एस्थर को वहां से दफ़ा या दफ़न कर देने पर आमादा थे। बेशक ऐसे लोग संख्या में बहुत नहीं थे लेकिन वे एस्थर के खिलाफ नरेटिव बनाने में कामयाब हो रहे थे। एक लड़की जिसके माता पिता का कोई पता न था ,उसे लोग मार डालना चाहते थे। पॉल के प्रेम का कोई मोल उनकी आँखों में नहीं था।ऐसी श्रेष्ठता उनके भीतर पसर गई थी जहाँ एस्थर का यहूदी होना उसके क़त्ल हो जाने के लिए काफी था।
पॉल सा दिल इन लोगों के पास नहीं था, ये नाज़ियों के प्रोतेंतोक्रात (चेक भाषा में जिसका अर्थ थोड़ी देर के लिए) शब्द के बहकावे में वे लंबे समय के लिए आ गए थे। पॉल अपने सिलेबस में नाज़ी सेना की जीवनियां नहीं रटना चाहता था। वह अपने हिसाब से अपनी दुनिया में रंग भरने की ख़्वाहिश रखता था। अपने माता -पिता जिन्हें वह ब्याह के काफी समय बाद पैदा हुआ था,कोई कष्ट नहीं देना चाहता था क्योंकि वे पॉल के लिए इतने निर्मल,उदार और पारदर्शी थे कि वह अनजाने में भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहता जिससे उन्हें तकलीफ हो। पिता जानते थे कि पॉल एक होनहार विद्यार्थी है लेकिन उनकी अनुभवी आँखें यह भी देख पा रहीं थीं कि देश पर फ़िलहाल शैतान का साया पड़ चुका है शहर फ़ौजी बूटों और गोलियों की आवाज़ से कांप रहा था और कांप रही थी एस्थर की देह अपने क़रीब फ़ौजी गाड़ियों की आवाज़ सुनते हुए। पॉल दौड़ रहा था।
अर्नेस्ट! ज़रा देख तो. .. एक जवान यहूदिन !!
जर्मन भाषा में ऐसा बोलकर वे उसे घेर कर खड़े हो गए।
राजकमल पेपर का यह पहला संस्करण 1984 में प्रकाशित हुआ था , आवरण चित्र एफ एन सूजा का है।
- वर्षा मिर्ज़ा (समीक्षक ख्यातनाम वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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